24-Jun-2023, Saturday
Sarve Bhavantu Sukhinaḥ
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DELHI POLLUTION
इस वर्ष बेचारे राजनीतिज्ञ दीवाली पर राजनीति के पटाख़े नहीं चला पाएंगे। हुआ कुछ यूं है कि दीवाली से पहले ही दिल्ली और पड़ोसी राज्यों की वायु ज़हरीली हो चुकी है। हर तरफ़ बदहवासी है।
लंदन: दिल्ली में करोड़ों रुपये ख़र्च कर ‘स्मॉग टॉवर्स’ लगवाए थे। वे काम ही नहीं कर रहे। वैसे तो भारत में सरकारें ही बहुत मुश्किल से काम करती हैं। तो भला उनकी लगाई मशीनें कब और कैसे काम करेंगी, यह जान पाना आसान नहीं है। देखने में यही आता है कि भारतीय राजनीतिक दल हर समय ‘चुनावी मोड’ में ही लगे रहते हैं। कभी किसी भी सरकार को आम आदमी की समस्याओं या देश की प्रगति के बारे में सोचने का समय नहीं मिलता। पुरवाई के सहयोगी पीयूष द्विवेदी ने मुझे बताया कि वह एक लेख पढ़ नहीं पाया तो मैंने मज़ाक में कह दिया, “आलस्य छोड़ो!… और जल्दी से पढ़ डालो।” मगर पीयूष ने बहुत गंभीरता से कहा, “सर नोएडा में हवा इतनी ज़हरीली हो गई है कि साँस लेने से ही बदन में बुख़ार सा महसूस होने लगा है।”
लंदन में भी भारतीय टीवी चैनलों के समाचारों से भारत का हाल पता चलता रहता है मगर जब कोई अपना जानकार स्वयं बताए कि हालात क्या हैं तो चिंता तो हो ही जाती है। अंग्रेज़ी का शब्द स्मॉग (smog) स्मोक और फ़ॉग को मिला कर बना है – यानी कि धुआं और धुंध के मिलने से बनता है स्मॉग। यानी कि धूल, धुआं और कुहासा मिलने पर बन जाएगा ‘धुंआसा’। तो दिल्ली हर वर्ष ‘धुआंसे’ का शिकार होती है।
दिल्ली में सांस लेना मना है! मुझे याद है जब मैं एअर इंडिया में फ़्लाइट परसर की नौकरी किया करता था तो मध्य नवंबर से लेकर फ़रवरी की शुरूआत तक प्रभात के समय दिल्ली में विमान उतारने में हमेशा हमारे पायलटों को परेशानी होती थी। हमारी उड़ानें बहुत बार दिल्ली से किसी अन्य शहर की ओर मोड़ दी जाती थीं। ज़ाहिर है कि ‘धुआंसे’ की समस्या कोई नई समस्या नहीं है। वर्षों से दिल्ली-वासी इसे झेल रहे हैं। मुश्किल सिर्फ़ इतनी सी है कि अब यह समस्या विकराल होती जा रही है। अभी नवंबर ही है और आसमान पर लिख दिया गया है कि “दिल्ली में सांस लेना मना है!” दिल्ली की हवा ज़हरीली हुई जा रही है और वायु प्रदूषण नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है। शुक्रवार 3 नवंबर को दिल्ली-वासी जब सुबह उठे, तो बाहर जैसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। सरकारी आंकड़ों की तरफ़ ध्यान दें तो दिल्ली के आनन्द विहार में प्रदूषण स्तर रिकॉर्ड 854 अंक तक पहुंच गया था तो ज्यादातर जगहों पर यह 500 से 700 अंक के बीच रहा। दोपहर दो बजे के करीब भी दिल्ली का औसत प्रदूषण स्तर 500 अंक से अधिक बना रहा, जबकि मंदिर मार्ग और लुटियन दिल्ली के आसपास कई इलाकों में यह 650 अंक के आसपास बना रहा।
बांग्लादेश दुनिया का सबसे प्रदूषित देश
दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। लगातार दूसरे साल भारतीय राजधानी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में टॉप पर है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका दूसरे नंबर पर, अफ्रीकी देश चाड की राजधानी नजामिना, तीसरे तजाकिस्तान का दुशांबे, चौथे और ओमान का मस्कट, पांचवें नंबर पर है। दुनिया के पंद्रह सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर सेंट्रल और दक्षिण एशिया में है। इनमें से दस शहर भारत के हैं। भारत के प्रदूषित शहरों की सूची में अग्रणी हैं – भिवाड़ी (अलवर), गाज़ियाबाद, दिल्ली, जौनपुर, नोएडा, बागपत, हिसार, फरीदाबाद, ग्रेटर नोएडा, रोहतक। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किसी भी शहर में PM2.5 का स्तर 5 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इस डेटा के अनुसार बांग्लादेश दुनिया का सबसे प्रदूषित देश है। चाड दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है। चीन इस रैंकिंग में 22वें नंबर पर है। एक साल पहले चीन 14वें नंबर पर था। दिल्ली का नाम आजकल सोशल मीडिया में ‘दम घोंटू दिल्ली’ बन गया है।
वायु प्रदूषण राजनीतिक दलों की सरकार देखकर हमला नहीं करता
2018 और 2020 तक आम आदमी पार्टी के नेताओं या प्रवक्ताओं से जब भी प्रदूषण पर बात की जाती थी तो उनका टका-सा जवाब होता था कि “पंजाब में किसान पराली जलाने से बाज़ आएंगे नहीं और दिल्ली का वातावरण दूषित होने से कोई रोक नहीं सकता।” मगर आज तो पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है। तो क्या आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने पंजाब के किसानों को कोई ऐसा तरीका उपलब्ध करवा दिया है जिससे पराली को जलाने की समस्या से निपटने का उपाय हो सके। आम आदमी पार्टी का कहना है कि वे जितने कदम प्रदूषण नियंत्रण के लिये उठा चुके हैं, इससे पचास प्रतिशत तक सफलता मिली है। मगर नवंबर के प्रथम सप्ताह में ही हवा ज़हरीली हो गई है और स्कूल कॉलेज बंद करने की नौबत आ रही है। नये कानून और नियम बनाए जा रहे हैं ताकि दिल्ली की हवा साँस लेने लायक बन सके। भारत के राजनीतिक दलों को आरोप-प्रत्यारोप से बच कर इस विषम परिस्थिति से निपटने के लिये मिलकर कोई हल खोजना होगा। दलगत राजनीति से ऊपर उठना बहुत ज़रूरी है। वायु प्रदूषण राजनीतिक दलों की सरकार देख कर हमला नहीं करता। आवश्यकता परिपक्व सोच की है। कहा तो यह भी जा रहा है कि आर.सी.सी. की सड़कें भी प्रदूषण बढ़ाने में योगदान देती हैं। हमें इस समस्या को चुनावों के साथ जोड़ने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिये।
हवा आख़िर ज़हरीली कब और कैसे?
भारतीय जनता पार्टी दिल्ली और पंजाब की सरकार पर आरोप लगा रही है तो आम आदमी पार्टी हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर की सरकार की तरफ़ उंगलियां उठा रही है। कांग्रेस अपना पल्ला राजस्थान में झाड़ रही है। बीमार हो रहा है आम आदमी… बेचारा सोच रहा है कि वोट लेकर सरकार तो सभी बनाने को तैयार है मगर समस्या का समाधान ढूंढने का समय किसी के पास भी नहीं है।
पाठक अवश्य जानना चाहेंगे कि हवा आख़िर ज़हरीली कब और कैसे हो जाती है। तो हम बताना चाहेंगे कि जब हवा में कॉर्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, अमोनिया, ग्राउंड लेवल ओजोन, लेड यानी सीसा, ऑरसेनिक निकल, बेन्जेन, बेन्जेन पायरिन, पीएम-10 और पीएम-2.5 की मात्रा अचानक बढ़ जाती है, तब हवा खराब होने लगती है। इसमें पीएम 2.5 की भूमिका बेहद खतरनाक है। यह विज़िबिलिटी (यानी कि दृष्टिसीमा) कम कर देती है। इसके कण बहुत छोटे होते हैं। एक मीटर का 10 लाखवां हिस्सा होता है इसका एक कण। ये कण आसानी से हमारे शरीर में पहुंचकर खून में शामिल हो जाते हैं। इसका तत्काल असर अस्थमा और सांस के मरीजों की दिक्कत बढ़ा देता है। एयर क्वालिटी इंडेक्स जब मध्यम यानी 101-200 के बीच होता है, तभी जनस्वास्थ्य पर बुरा असर डालना शुरू कर देता है।
मुंबई के हालात भी कुछ बेहतर नहीं मामला मुंबई में भी कुछ बेहतर नहीं है। जब संजय गांधी उद्यान की मार्च की स्थिति की वर्तमान से तुलना करते हैं तो साफ़ पता चलता है कि मुंबई भी दिल्ली और एन.सी.आर. से कोई बेहतर नहीं है। अचानक वहां वायु प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ गया है। मेरी बेटी आर्या बताती है कि शाम को जब वह सैर करने निकलती है तो साँस लेना दूभर हो जाता है। हर तीसरा व्यक्ति ‘इन्हेलर’ का इस्तेमाल करता दिखता है। प्रदूषण के लिये बढ़ती कारें, ट्रक, बसें, ऑटो रिक्शा, मोटर साइकल जैसे वाहन; फ़ैक्ट्रियों का धुआं और केमिकल; एअर कंडीशनर और कूलर; और किसानों द्वारा पराली का जलाना – सभी ज़िम्मेदार हैं। औद्योगिक मशीनीकरण और बढ़ती जनसंख्या भी इसका एक महत्वपूर्ण कारण है। हमें इस समस्या से जुड़े अधिनियमों के बार में पुनर्विचार करना होगा। जनवरी 2014 में वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर एक एक्सपर्ट संचालन समिति की स्थापना की गई थी। इस समिति ने अगस्त 2015 में अपनी रिपोर्ट पेश की। तब से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अधिकार छीने जाने के साथ-साथ कानून और मानक दोनों में ही हमारी प्रवर्तन मशीनरी में कमजोरियां स्पष्ट रूप से सामने आई हैं।
साँस लेना आदत से अधिक बनी ‘आफ़त’ इस वर्ष बेचारे राजनीतिज्ञ दीवाली पर राजनीति के पटाख़े नहीं चला पाएंगे। हुआ कुछ यूं है कि दीवाली से पहले ही दिल्ली और पड़ोसी राज्यों की वायु ज़हरीली हो चुकी है। हर तरफ़ बदहवासी है। मेदांता अस्पताल के वरिष्ठ फेफड़े विशेषज्ञ डॉ. अरविंद कुमार का कहना है कि दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में फैला वायु प्रदूषण सभी उम्र के लोगों के लिए हानिकारक है। यहां तक कि एक अजन्मे बच्चे पर भी इसका गंभीर असर पड़ता है। गुलज़ार की एक कविता की पहली दो पंक्तियां हैं – “साँस लेना भी कैसी आदत है / जीये जाना भी क्या रवायत है…” आज लगता है कि साँस लेना आदत से अधिक ‘आफ़त’ बन गया है। लोगों ने सुबह की सैर करना बंद कर दिया है. वहीं दिल्ली में पांचवीं तक के स्कूल बंद कर दिए गए हैं। इस तरह कोई हल नहीं निकल पाएगा।… सभी सरकारें मिल कर चाहे आम आदमी की रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या के लिये हल न भी खोज पाएं मगर कम से कम उसे साँस लेने के लिये स्वच्छ हवा तो उपलब्ध करवाएं।
लेखक — तेजेन्द्र शर्मा लंदन निवासी वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं.